लेखनी प्रतियोगिता -23-Aug-2023गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय
गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय
गोस्वामी तुलसीदास दास जी के जन्म स्थान के विषय में अनेक किंवदन्ती है। जानकारी और साक्ष्य के आधार पर बात करें तो गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 1511 ईस्वी में कासगंज उत्तर प्रदेश के सूकर क्षेत्र ( जिसे सौरौ के नाम से भी जाना जाता है) में एक सर्यूपारिय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। लेकिन कुछ विद्वान मानते हैं की तुलसीदास जी का जन्म राजापुर जिले के चित्रकूट में हुआ था।
अकबर को तुलसीदास जी का समकालीन सम्राट माना जाता है। तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्मा राम दुबे एवं माता जी का नाम हुलसी दुबे था तुलसीदास जी की माता एक आध्यात्मिक महिला एवं गृहणी थीं।
गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म के संबंध में एक बहुत ही चर्चित प्रसंग सुनने को मिलता है की तुलसीदास जन्म के समय 12 माह तक अपनी मां के गर्भ में थे। जब तुलसीदास जी का जन्म हुआ तो वह काफी हष्ट पुष्ट बालक के रूप में दिखाई दे रहे थे एवं तुलसीदास जी के मुंह में सारे दांत थे।
अपने जन्म के साथ ही तुलसीदास ने राम नाम लेना शुरू कर दिया था। जिस कारण तुलसीदास जी के बचपन का नाम “रामबोला” पड़ गया। जन्म की यह सब घटनाएं देख उनके आस पास के रहने वाले लोग बहुत ही आश्चर्य चकित थे। तुलसीदास जी की प्रारम्भिक शिक्षा उनके गुरु नर सिंह दास जी के आश्रम में हुई थी।
जब तुलसीदास जी 7 वर्ष के थे तो उनके माता-पिता ने प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा के लिए श्री अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य श्रीनरहर्यानन्द जी (नरहरि बाबा) के आश्रम भेज दिया था।नर सिंह बाबा जी के आश्रम में रहते हुए तुलसीदास जी ने 14 से 15 साल की उम्र तक सनातन धर्म, संस्कृत, व्याकरण, हिन्दू साहित्य, वेद दर्शन, छः वेदांग, ज्योतिष शास्त्र आदि की शिक्षा प्राप्त की।रामबोला के गुरु नर सिंह दास ने ही रामबोला का नाम गोस्वामी तुलसीदास रखा था।
अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद तुलसीदास जी अपने निवास स्थान चित्रकूट वापस आ गए और लोगों को राम कथा , महाभारत कथा आदि सुनाने लगे।
तुलसीदास जी का तपस्वी और जीवन की मोह माया को त्याग देने के संबंध में एक प्रसंग बहुत प्रचलित है।तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली नाम की लड़की से 1526 ईस्वी (विक्रम संवत 1583) में हो गया था। विवाह के पश्चात तुलसीदास जी अपनी पत्नी के साथ राजापुर नामक स्थान में रहा करते थे। तुलसीदास और रत्नावली दम्पति का एक पुत्र था जिसका नाम तारक था। लेकिन किसी कारण वश बहुत ही कम उम्र में तारक की मृत्यु शयन अवस्था में हो गई थी।
पुत्र की मृत्यु के बाद तुलसीदास जी का अपनी पत्नी से लगाव कुछ अधिक ही बढ़ गया था। तुलसीदास जी किसी भी हालत में अपनी पत्नी से अलगाव सहन नहीं कर सकते थे।
बेटे की अकाल मृत्यु दुःख से पीड़ित तुलसीदास जी की पत्नी एक दिन बिना बताये अपने मायके चली गई। जब तुलसीदास जी को इसके बारे में पता चला तो वह रात को चुपके से अपनी पत्नी से मिलने ससुराल पहुंच गए।
जब वह अपनी ससुराल जारहे थे तब रात का समय था। बहुत तेज बरसात होरही थी उनकी ससुराल जाते समय नदी पार करनी पड़ती थी। रात को वह एक मुर्दे को नाव समझकर उस पर बैठकर नदी पार कर गये। और जब ससुराल पहुँचे तब पतनाले में लटक रहे सांप को पकडकर ऊपर चढ़ गये और चुपके से पत्नी के पास पहुँच गये
इतनी रात में छत से उनको आया देख रत्नावली कौ बहुत ही ज्यादा शर्म की भावना महसूस हुई। और रत्नावली ने तुलसीदास जी से कहा “ये मेरा शरीर जो मांस और हड्डियों से बना है। जितना मोह आप मेरे साथ रख रहे हैं अगर उतना ध्यान भगवान राम पर देंगे तो आप संसार की मोह माया को छोड़ अमरता और शाश्वत आनंद प्राप्त करेंलोगे।
अपनी पत्नी की यह बात तुलसीदास जी को एक हृदयघात करती हुई एक तीर की तरह चुभी और उन्होंने घर को त्यागने का मन बना लिया। जिसके बाद तुलसीदास जी घर छोड़कर तपस्वी बन गए। तपस्वी बनकर तीर्थ स्थानों का भ्रमण करने लगे।
चौदह साल तक विभिन्न स्थानों का भ्रमण कर अंत में तुलसीदास जी वाराणसी पहुंचे। वाराणसी पहुंचकर तुलसीदास आश्रम बनाकर रहने लगे और लोगों को धर्म, कर्म, शास्त्र, आदि की शिक्षा देने लगे।
तुलसीदास जी की रचनाओं में बहुत सी जगहों पर हनुमान जी से मुलाकात का वर्णन किया है। अपनी रचना में तुलसीदास जी लिखते हैं की जब वह बैराग्य धारण कर वाराणसी में रह रहे थे। तब एक दिन बनारस के घाट पर तुलसीदास जी की मुलाक़ात एक साधू से होती है जो भगवा वस्त्र पहने राम नाम का जाप करते हुए गंगा की ओर स्नान करने लिए जा रहा था। अचानक ही मार्ग में तुलसीदास जी उस साधु से टकराते हैं।
उनसे टकराने के बाद तुलसीदास जी चिल्लाते हुए कहते हैं की हे साधु महाराज मैंने आपको पहचान लिया है, मुझे पता है आप कौन हैं। हे साधू महाराज आप मुझे इस से छोड़कर नहीं जा सकते।
तुलसीदास जी इतना कहने पर साधू ने कहा “हे तपस्वी भगवान राम आपका भला करें” इतना कहकर साधू ने तुलसीदास जी को आशीर्वाद दिया और अपने स्थान की ओर चले गए। हनुमान जी ने तुलसीदास जी का मार्ग दर्शन करते हुए बताया की जब तुम चित्रकूट आओगे तो तुम्हें भगवान राम के दर्शन करवा ऊँगा।
श्री रामचरितमानस में एक प्रसिद्ध प्रसंग मिलता है जब तुलसीदास जी ने भगवान राम से भेंट की। घटना कुछ इस प्रकार है की रामभक्ति में लीन रहने वाले तुलसीदास जी एक समय जब उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित चित्रकूट के रामघाट में आश्रम बना कर रहते थे।
तो एक दिन तुलसीदास जी कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा करने गए हुए थे। जहाँ तुलसीदास जी ने दो राजकुमारों को घोड़े पे सवार आते देखा लेकिन तुलसीदास जी ना तो उन दोनों राजकुमारों को पहचान सके और ना ही उन दोनों राजकुमारों के बीच अंतर जान सके।
इस घटना के बाद जब अगली सुबह नदी के किनारे घाट पर तुलसीदास जी चंदन का लेप बना रहे थे तो दो राजकुमार तपस्वी का भेष बनाकर तुलसीदास जी एक आश्रम आते हैं और वह उन राजकुमारों के चंदन का लेप लगाते हैं।तब हनुमान जी तोता बनकर तुलसी दास जी को बताते हैं
चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़।
तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देत रघुवीर।
तुलसीदास जी ने भगवान राम के माथे पर तिलक लगाया और पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया। इस तरह से भगवान राम का मिलन हुआ। भगवान राम से भेंट के संबंध में तुलसीदास जी ने बताया है कि भगवान राम की मनमोहक अद्भुत छवि को देखकर वह मंत्र मुग्ध हो गए और अपनी सुध-बुध खो बैठे थे।
तुलसीदास जी ने अपने 112 वर्ष के लम्बे जीवन काल में अनेक ग्रंथ लिखे इनमें श्री रामचरितमानस सबसे पवित्र व पूज्यनीय ग्रंथ है।
तुलसीदास जी जीवन के अंतिम समय में वाराणसी में ही रह रहे थे। जीवन के अंतिम क्षणों में भी तुलसीदास जी की दिनचर्या पूरी तरह से रामभक्ति में ही लीन रहती थी। वाराणसी में 112 साल की उम्र में 1623 ईस्वी में तुलसीदास जी ने समाधि ली।
आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा " पचौरी"
HARSHADA GOSAVI
27-Aug-2023 07:22 AM
nice
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RISHITA
27-Aug-2023 01:40 AM
amazing
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Babita patel
24-Aug-2023 05:59 AM
knowledgeable post wow
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